मलकापुर का पारपेट: मुस्लिम बहुल इलाके की आवाज़ कब सुनेगी सियासत?

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मलकापुर का पारपेट: मुस्लिम बहुल इलाके की आवाज़ कब सुनेगी सियासत?

 मलकापुर का पारपेट: मुस्लिम बहुल इलाके की आवाज़ कब सुनेगी सियासत?


मलकापुर। प्रतिनिधि।
मलकापुर का पारपेट, जहां मुस्लिम आबादी की तादाद ज्यादा है, हमेशा से नेताओं के लिए सियासी अखाड़ा बना हुआ है। चुनाव आते ही यहां की गलियों में बड़े-बड़े नेता दिखने लगते हैं। हर आदमी पैसे खर्च करके नेता बनने की सोचने लगता है। लेकिन जब पांच साल जनता के असली मसले उठाने का वक्त आता है, तो यही नेता चुप्पी साधकर गायब हो जाते हैं।

पारपेट की जनता ने हमेशा नेताओं का स्वागत किया है। यहां तक कि जो कल तक विरोधी नारे लगाता था, उसे भी लोगों ने माफ करके मंच पर बैठा दिया, अध्यक्ष बना दिया। यही भोलापन नेताओं के लिए सबसे आसान रास्ता बन जाता है। जनता सोचती है कि यह नेता हमारे पांच साल तक साथ देगा, लेकिन हकीकत यह है कि पांच साल तक यहां की समस्याओं पर सिर्फ पर्दा डाला जाता है।

समस्याओं पर खामोशी, सियासत पर शोर

मुस्लिम बहुल इस इलाके की बुनियादी परेशानियां – बेरोजगारी, शिक्षा, साफ पानी, सड़कों की हालत और सरकारी योजनाओं का न पहुंचना – सबकुछ नजरअंदाज कर दिया जाता है। पांच साल बीत जाते हैं, लेकिन जनता इंतज़ार करती रह जाती है: आज लेटर आएगा, कल लीडर आएगा!

जनता का गुस्सा

इलाके के कई लोगों का कहना है कि नेताओं के लिए मुस्लिम वोट सिर्फ गिनती का आंकड़ा है। चुनावी भाषणों में वादे किए जाते हैं, “तुम्हारे लिए काम करेंगे”, “तुम्हारे बच्चों का भविष्य बनाएंगे” लेकिन चुनाव जीतने के बाद यही नेता अपने दरवाज़े तक पहुंचने नहीं देते।

यहां के युवाओं का सवाल है – “जब हमारी गलियों में गंदगी फैली है, जब हमारी कॉलोनियों में पीने का पानी नहीं, जब बेरोजगारी से हमारे बच्चे परेशान हैं, तब नेता कहां चले जाते हैं?”

अब आंखें खोलने का वक्त

पारपेट की जनता को अब सोचना होगा कि बार-बार उन्हीं चेहरों को वोट देकर आखिर हासिल क्या हो रहा है। नेताओं से सवाल पूछना होगा, काम का हिसाब मांगना होगा। अगर आज जनता ने अपनी आवाज़ बुलंद नहीं की, तो कल फिर वही होगा – नेता आएंगे, वादे करेंगे, और अगले पांच साल तक जनता सिर्फ ऊपर आसमान ताकती रह जाएगी।
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