ग़ाज़ा पर इस्राइल की कार्रवाई पर भारत सरकार की चुप्पी, कांग्रेस ने उठाई आवाज़
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August 18, 2025
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भारत सरकार ने ग़ाज़ा पर इस्राइल की आक्रामकता को लेकर चुप्पी साध रखी है, जबकि कांग्रेस लगातार फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में खड़ी दिखाई दे रही है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी सहित पार्टी नेतृत्व ने इस्राइल की कार्रवाई को “नरसंहार” करार देते हुए सरकार के रुख की तीखी आलोचना की है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत सरकार ने फ़िलिस्तीन, विशेष रूप से ग़ाज़ा को भुला दिया है, जबकि कांग्रेस ने उसे याद रखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के हर मंच पर युद्ध विराम की बात तो करते हैं, परंतु उन्होंने अपने मित्र और इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर फ़िलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचार रोकने का दबाव नहीं बनाया। मोदी यदि स्पष्ट रूप से नेतन्याहू से कहते कि यह अत्याचार बंद हो, तो संभव है कि हत्याकांड रुक जाता। लेकिन अब तक उन्होंने केवल सामान्य अपील ही की कि दोनों पक्ष वार्ता से समस्या सुलझाएँ और इसका समाधान “दो राष्ट्र सिद्धांत” में है। परंतु जिस दृढ़ता और सक्रियता से यह बात रखी जानी चाहिए, वैसा प्रयास अब तक नहीं हुआ।
भारत की पारंपरिक विदेश नीति हमेशा फ़िलिस्तीन समर्थक रही है। चाहे जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी हों या राजीव गांधी, सभी ने फ़िलिस्तीन के पक्ष में आवाज़ उठाई थी और भारत की नीति उसी अनुरूप बनी रही। लेकिन वर्तमान समय में तस्वीर बदली हुई है। कांग्रेस को छोड़कर शायद ही कोई बड़ा दल ग़ाज़ा के पक्ष में मुखर दिखता है। कभी-कभार समाजवादी पार्टी, शिवसेना या राजद जैसे दल विरोध तो जताते हैं, परंतु उनका स्वर प्रभावी नहीं होता। इसके विपरीत, कांग्रेस बार-बार इस मुद्दे को उठाती रही है और इस्राइली कार्रवाई की निंदा करते हुए उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की माँग करती रही है।
ताज़ा घटनाक्रम में, कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने बयान दिया है कि इस्राइल ग़ाज़ा में नरसंहार कर रहा है और भारत सरकार ने शर्मनाक चुप्पी साध रखी है। उनके अनुसार अब तक 60 हज़ार से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या की जा चुकी है, जिनमें 18,430 बच्चे शामिल हैं। असंख्य बच्चे भूख से मर रहे हैं। प्रियंका गांधी ने हाल ही में पाँच फ़िलिस्तीनी पत्रकारों की निर्मम हत्या की भी कड़ी निंदा की और इसे “घृणित अपराध” कहा। उन्होंने कहा कि इस्राइली हिंसा और नफ़रत के सामने जो लोग डटे हुए हैं, उन्हें दबाया नहीं जा सकता।
इससे पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं और इस्राइल की कार्रवाई की निंदा कर चुके हैं।
इस्राइल की आक्रामकता और अमानवीय कार्रवाई पर पूरी दुनिया में आक्रोश है। कई देशों की सरकारें चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन विश्वभर में जगह-जगह इस्राइल के विरोध और फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। यहाँ तक कि अमेरिका, जो इस्राइल का सबसे बड़ा सहयोगी है, और स्वयं इस्राइल के भीतर भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और युद्ध विराम तथा बंधकों की रिहाई की माँग तेज़ हो रही है।
न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक हालिया लेख में इस्राइली विद्वान ओमर बर्टन, जो स्वयं इस्राइली सेना में रह चुके हैं और नरसंहार विषय पर प्रामाणिक माने जाते हैं, ने स्वीकार किया है कि इस्राइल ग़ाज़ा में नरसंहार कर रहा है। इसी अख़बार में एक अन्य विद्वान शमाईल लेजरमैन ने लिखा कि इस्राइल ने अमेरिकी मीडिया के सहयोग से ग़ाज़ा के नागरिकों के खिलाफ झूठा प्रचार किया है। यूरोप के कुछ प्रमुख मीडिया संस्थानों ने भी अब माना है कि ग़ाज़ा में मरने वालों की वास्तविक संख्या आधिकारिक आँकड़ों से कहीं अधिक है।
गार्डियन अख़बार की एक रिपोर्ट के अनुसार, 380 लेखकों के समूह ने संयुक्त राष्ट्र को खुले पत्र में लिखा कि ग़ाज़ा में इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार जारी है। 800 लोगों के एक अन्य समूह, जिसमें कई पूर्व न्यायाधीश भी शामिल हैं, ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किअर स्टारमर को पत्र लिखकर सरकार से इस्राइल पर प्रतिबंध लगाने की माँग की। डबलिन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एंड्रयू फ़ोर्ड ने भी कहा है कि इस्राइल ने अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों की खुली अवहेलना की है और वियना संधि के अनुच्छेद 29 का उल्लंघन किया है, जिसमें
लेकिन भारत सरकार का रुख इस वैश्विक प्रवृत्ति से अलग है। वह ग़ाज़ा में हो रही इस्राइली कार्रवाई की खुलकर आलोचना करने से बच रही है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, विश्व की हथियार बनाने वाली कंपनियाँ इस संघर्ष से अरबों डॉलर का लाभ कमा रही हैं और भारत की कुछ कंपनियाँ भी इस्राइल को हथियार आपूर्ति कर रही हैं। अडानी समूह की एल्बिट एडवांस्ड सिस्टम्स इंडिया और म्यूनिशन इंडिया जैसी कंपनियाँ ड्रोन और अन्य हथियार उपलब्ध करा रही हैं, जो ग़ाज़ा में फ़िलिस्तीनियों पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
हालाँकि विदेश मंत्रालय बार-बार यह बयान देता रहा है कि भारत इस विवाद का समाधान वार्ता और “दो राष्ट्र सिद्धांत” में देखता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकार ने इस्राइली कार्रवाई की निंदा कभी नहीं की। हामास के हमले की निंदा तो की गई, परंतु ग़ाज़ा में निर्दोष नागरिकों की हत्या पर सरकार मौन है।
सच यह है कि यदि भारत मानवता में विश्वास करता है तो उसे ग़ाज़ा में हो रही 60 हज़ार से अधिक निर्दोष नागरिकों की हत्याओं, जिनमें महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं, की निंदा करनी चाहिए। वहाँ की भयावह तस्वीरें और वीडियो देखकर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति विचलित हो जाएगा। लेकिन भारत सरकार अब तक इस त्रासदी के प्रति कठोर रुख अपनाने से बचती रही है।
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