मथुरा मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित करने की याचिका खारिज की

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मथुरा मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित करने की याचिका खारिज की

400 साल पुरानी इबादतगाह के हक़ में बड़ा फैसला, मुस्लिम पक्ष को राहत

प्रयागराज/मथुरा:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को "विवादित ढांचा" घोषित करने की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत के इस निर्णय से मुस्लिम समाज को बड़ी राहत मिली है, जो लंबे समय से इस इबादतगाह की धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान को लेकर चिंतित था।

यह याचिका महेन्द्र प्रताप सिंह, अध्यक्ष, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि मस्जिद उस स्थान पर बनी है जहां पहले एक मंदिर था। उन्होंने इसे विवादित घोषित करने की मांग की थी।

 मुस्लिम पक्ष की दलीलें

मुस्लिम समुदाय की ओर से पेश वकीलों ने ठोस और ऐतिहासिक दलीलें देते हुए कोर्ट को बताया कि:

  • शाही ईदगाह मस्जिद 400 वर्षों से लगातार अस्तित्व में है, और यहां नियमित रूप से नमाज़ अदा होती आ रही है।

  • मस्जिद को लेकर पहले से कोई वैधानिक विवाद दर्ज नहीं था।

  • याचिका का उद्देश्य धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास भी हो सकता है।

 अदालत का संतुलित फैसला

माननीय न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष की बातों से सहमति जताई
कोर्ट ने कहा कि याचिका में दिए गए तर्क "अपर्याप्त और कानूनी रूप से असंगत" हैं। इसलिए शाही ईदगाह को विवादित घोषित करने की मांग अस्वीकार की जाती है।

 बाबरी मस्जिद से तुलना नहीं

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा बाबरी मस्जिद मामले का उदाहरण देना भी अप्रासंगिक है क्योंकि दोनों मामलों की परिस्थितियाँ और पृष्ठभूमियाँ पूरी तरह अलग हैं।

 मुस्लिम समाज में संतोष

इस फैसले के बाद मथुरा के मुस्लिम समाज में संतोष और राहत की भावना देखी गई। स्थानीय लोगों ने कहा कि यह फैसला न्याय और सच्चाई की जीत है।
"हम सालों से शांति और सौहार्द के साथ इबादत करते आए हैं, और हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भी इसी भाईचारे को बनाए रखा जाएगा," एक स्थानीय बुजुर्ग ने कहा।


विशेष टिप्पणी:
यह फैसला न केवल मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि देश में धार्मिक सहिष्णुता और कानूनी मर्यादा को भी मजबूत करता है। अदालत का यह रुख बताता है कि ऐतिहासिक इमारतों को सिर्फ आरोपों के आधार पर विवादित नहीं ठहराया जा सकता

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