उदयपुर फाइल्स' की रिलीज़ पर कोर्ट की रोक के बाद मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान — "यह फैसला सिर्फ एक फिल्म पर नहीं, बल्कि नफरत के एजेंडे पर भी लगाम है

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नई दिल्ली – बहुप्रतीक्षित और विवादों में घिरी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ की रिलीज़ पर उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगा दी है। यह फैसला उन लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जो इस फिल्म को देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा मानते थे। इस रोक के बाद, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है, जिसमें उन्होंने अदालत के निर्णय को एक संवैधानिक जीत और सांप्रदायिक ताकतों की हार बताया है।

"संविधान की आत्मा को मज़बूती मिली है"

मौलाना मदनी ने कहा, “हम इस अंतरिम आदेश का स्वागत करते हैं। यह सिर्फ एक फिल्म पर प्रतिबंध नहीं है, बल्कि यह उन सांप्रदायिक तत्वों के इरादों पर भी सीधा प्रहार है, जो समाज में नफरत फैलाकर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। कोर्ट ने आज यह स्पष्ट कर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश के संविधान, नैतिक मूल्यों और सामाजिक संतुलन से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।”

"फिल्म के जरिए पूरे समुदाय को खलनायक दिखाने की कोशिश"

मदनी ने आरोप लगाया कि इस फिल्म में एक दर्दनाक घटना की आड़ में एक पूरे समुदाय को दोषी ठहराने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा, “यह फिल्म केवल एक व्यक्ति या एक घटना पर केंद्रित नहीं है, बल्कि इसमें जिस तरह की सामूहिक छवि गढ़ने का प्रयास किया गया है, वह न केवल भ्रामक है बल्कि समाज को विभाजित करने वाला है। ऐसी फिल्मों का उद्देश्य कला या सच्चाई को सामने लाना नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांप्रदायिक लाभ उठाना है।”

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि फिल्म से कुछ दृश्य हटाए गए थे, फिर भी इसमें अभी तक ऐसे अंश मौजूद हैं जो सांप्रदायिक तनाव को हवा देने की पूरी क्षमता रखते हैं। अदालत ने इसी खतरे को पहचानते हुए स्टे का आदेश दिया है, जो न्यायपालिका की सजगता और संवेदनशीलता का प्रमाण है।”

"कपिल सिब्बल की दलीलों ने खोली फिल्म की असलियत"

इस मामले में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से कोर्ट में पक्ष रखते हुए जोरदार तरीके से तर्क दिए। मौलाना मदनी ने सिब्बल के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “उन्होंने अदालत को यह साफ तौर पर बताया कि यह फिल्म भारत के बहुलतावादी और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए कितनी घातक साबित हो सकती है। अदालत ने उनकी बातों को गंभीरता से लिया और इस पर तत्काल रोक लगाई।”

"भविष्य के फिल्म निर्माताओं को मिलेगा स्पष्ट संदेश"

मदनी ने इस फैसले को एक नजीर बताते हुए कहा कि इससे फिल्म निर्माण की दुनिया में एक स्पष्ट संदेश जाएगा — “कला और सिनेमा के नाम पर अगर कोई समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करेगा, तो वह कानूनी कार्रवाई से नहीं बच पाएगा। यह फैसला उन सभी फिल्म निर्माताओं के लिए चेतावनी है जो धार्मिक भेदभाव और नफ़रत फैलाकर चर्चा और लाभ कमाना चाहते हैं।

"इंशाल्लाह अंतिम फैसला भी हमारे पक्ष में होगा"

मौलाना मदनी ने आशा जताई कि यह तो सिर्फ शुरुआत है, अंतिम निर्णय भी न्याय और संविधान के अनुरूप होगा। “हम अदालत की कार्यवाही से पूरी तरह संतुष्ट हैं। हमने जो लड़ाई शुरू की थी, वह किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि देश की एकता और सांप्रदायिक सौहार्द की रक्षा के लिए थी। इंशाल्लाह, अंतिम फैसला भी हमें इंसाफ दिलाने वाला और नफरत फैलाने वालों को रोकने वाला होगा।


निष्कर्ष:
'उदयपुर फाइल्स' पर कोर्ट की रोक ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारत का संविधान और न्यायपालिका, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता के सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह मामला अब सिर्फ एक फिल्म का नहीं, बल्कि विचारधारा की टक्कर का रूप ले चुका है — एक तरफ सांप्रदायिक सोच, दूसरी तरफ संवैधानिक मूल्यों की रक्षा।

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